यथार्थवादी मूल्यों को सहेजने का प्रयास करता हुआ साहित्यिक समूह, 8 साझा संग्रह - कस्तूरी पगडंडियां गुलमोहर तुहिन गूँज 100कदम कारवाँ शतरंग का प्रकाशन
@Tweetmukesh
पागल जैसी बात न कर
अश्कों की बरसात न कर
जो कहना है वो ही कह
उल्टी-सीधी बात न कर
इक - दूजे को तरसें हम
पैदा वो हालात न कर
तू ख़ुद पर शर्मिन्दा हो
मुझ से ऐसी घात न कर
प्यार है ये शतरंज नहीं
प्यार में शह और मात न कर
- किरण यादव
@kiranYa24674497
मुझे नहीं पता
स्त्रियों को कितनी बार
छला पुरुषों ने,
मुझे पता है
जब भी स्त्रियों ने
बढ़ाए पाँव पुरुषों की ओर
पुरुषों ने झुक
कर पायल बांधें हैं।
- अभिषेक पाण्डेय
मैं सोडियम हूँ
लक्षण है शांत और सफ़ेद दिखना
हवा-पानी लगने पर ज्वलनशील हो जाना
इन दिनों हवा-पानी लग गया है मुझे
तुम लोहा हो
लक्षण है कठोर और मज़बूत दिखना
हवा-पानी तुम्हें नुक़सान पहुँचा देती है
तुम रक्त में बहा करो
रहा करो ।
- माधुरी
किताबों को सीने पर रखते हुए
मैं महसूस करती हूँ कि,
अगर पीड़ाओं का बोझ
शब्द नहीं उठाते तो,
तो दुनिया में नमक का भार कितना होता ?
- हर्षिता पंचारिया
@harshitapancha6
बाबूजी के बाहर जाने पर
मां कभी किवाड़ तुरंत बन्द नहीं करती
खुली छोड़ देती हैं सांकल
���भी कभी बाबूजी
कुछ दूर जाकर लौट आते हैं
कहते हुए कि कुछ भूल गया हूं
और मुस्कुरा देते हैं दोनों
मां ने सिखाया
किवाड़ की खुली सांकल
किसी के लौटने की एक उम्मीद होती है!
• प्रियांशी
@priyanshi599
●
ऐ कवि
कविता नहीं,
अपने समय की चिंता लिखो।
सब लिखते हैं
गहरा समंदर,
तुम डुबे को तिनका लिखो।
•
आंख में शोला दिखा नहीं है
तुमने अभी सच लिखा नहीं है।
राजमहल पर
सब लिखते हैं,
किसी गाँव का रस्ता लिखो।
ऐ कवि
कविता नहीं,
अपने समय की चिंता लिखो।
- नीलोत्पल मृणाल
@authornilotpal
पहाड़
झुक गया था
नदी के प्रेम में,
नदी
बह गयी थी
सागर के प्रेम में,
सागर
भर गया था
धरती की गोद में,
धरती
ढक गयी थी
आसमान के प्रेम में,
पहाड़,
नदी,
सागर,
धरती
और
आसमान
बन गए थे
आधार
स्त्री
और
पुरूष
प्रेम के।।
- देव लाल गुर्जर
@DevLalGurjar97
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना बनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक।
पिता पर मेरी आधी कविताओं के केंद्र में पति रहे
यह बात हमारे बच्चे जानते हैं
पर पति पर मेरी सारी कविताओं के केंद्र में पिता रहे
यह बात कोई नहीं जानता
मेरे सिवा!
-सुदर्शन शर्मा
स्पर्श
~~~
मैंने नवजात शिशु को देखा
शिशु देर तक
मेरी अँगुली पकड़े रहा
मैं एक अलौकिक
आत्मीय ऊर्जा से भर गया
पहली बार
मुझे अहसास हुआ
हम कविता को
छू भी सकते हैं।
● जसवीर त्यागी
मैंने कभी मछली नहीं खाई
सुना है
मछली का काँटा
गले में फंस जाये
तब न उगला जाता है
न निगला
ठीक वैसा ही होता होगा
प्रेम
धंस जाता होगा अंदर कहीं
न उगल पाते होंगे न निगल पाते होंगे
वह लोग ...
उसे...
- रश्मि मालवीया
एक समंदर है जो मेरे
काबू में है ,
और एक कतरा है जो
मुझसे सम्हाला नहीं
जाता...
एक उम्र है जो बितानी है
उसके बगैर
और एक लम्हा है जो
मुझसे गुजारा नहीं जाता
- गुलज़ार
प्रेम में!
किसी को जाने देना भी प्रेम ही है,
प्रेम में पहाड़...
नदी को समंदर तक जाने का रास्ता देता है,
वो भी उसके प्रेम में है,
पर उसे रोकता नहीं...
अपने हिस्से की बारिश भी
नदी को सौंप देता है !
- अर्पण जमवाल /
@JamwalArpan
"औरत की कमाई खाता है साला!"
यह वाक्य-
पुरुषों के लिए गाली नहीं
महिलाओं की समर्थता का मज़ाक है
यह जानते हुए कि
कमाई का कोई लिंग नहीं होता!
- आदित्य रहबर
@Adityarahbar120
मेरी अंतिम इच्छा यहीं होगी
तुम लिखना एक काव्य रचना
मेरी मृत्यु पर
मेरे अनकहे बोल
मेरी मुस्कुराहट
मेरा प्रेम
मैं विदा होते समय
लें जाना चाहूंगी एक कविता
अपने साथ
जो अंतिम भेंट होगी
सिर्फ मेरे लिए
- श्वेता पाण्डेय
कम पढ़ाना
सब्ज़ी कटवाना
आटा गुंथवाना
चूल्हा जलवाना
घर में बिठाना
चुप रहना सिखाना
एक लड़की को 'औरत' बनाने में
हम सबका भरपूर योगदान है!
- आयुष चतुर्वेदी
@TheAyushVoice
जब मैं कहती हूं,
सुनो ना !
और तुम,
सारी व्यस्तताओं को,
ख़ारिज कर,कहते हो।
हां कहो ना!
ये हमारे मध्य होने वाले,
संवादों में से,
सबसे प्रेमिल संवाद है !!!
~ अर्पण जमवाल /
@JamwalArpan
(1)
मेरे घर में
स्त्री-पुरुष का कोई भेद नहीं है
मैं हमेशा ही किचन में मदद करता हूँ
इसमें जो "मदद" शब्द है न
यही भेदभाव है।
(2)
जातियाँ अब कहाँ रहीं ?
मैं नहीं मानता जातिवाद को।
मैं तो उनके घर खाता-पीता भी हूँ
यहाँ जो "उनके घर" शब्द है न
यही भेदभाव है।
- अशोक कुमार
न नींद अच्छी लगी न जगना जरूरी लगा
आँखों में ख्वाब का पलना जरूरी लगा
जिसने कहा जैसा हम वैसे ही चल दिए
हर आकार में हमको ढलना जरूरी लगा
पाषाण दिल रखकर जहाँ में क्या करेंगे
हिम सा हरदम पिघलना जरूरी लगा
सोचती थी छोड़ दूं क्या बचप��ा अपना
पर एक बार फिर मचलना जरूरी लगा
शिल्पी पचौरी
एक स्त्री तुम्हें उपहार देती है
देह और यौवन ही नहीं
अपनी चुप्पी और रातें भी
वह देती है तुम्हें उपहार में
प्रसव पीड़ा और थकान
अपनी उदासी और अनिद्रा भी
एक स्त्री का यह भी तो है उपहार
कि वह ख़ुद में बनी रहने देती है तुम्हारी याद
तुम्हारे चले जाने के बाद भी
- समृद्धि ।
@samridhi85
पिता कब तक पिता रहेंगे
कब दोस्त बनेंगे
और फिर कब बच्चा हो जाएँगे,
यह संतान पर निर्भर है।
कितनी बड़ी उपलब्धि है,
समय रहते यह जान लेना
कि पिता से मिलते हुए
झुककर पैर छूना उचित है या
बाहें खोल कर गले लगाना।
~आलोक (गीत) ।
@alokgeet
उसने उसे भरी आँखों से निहारा
माथे को चूमा
खींच कर सीने से लगा लिया
फिर भारी मन से दूर कर कहा
जाओ... चली जाओ
बसंत के आगमन के लिए जरूरी है
पतझड़ सा निष्ठुर हो जाना ... !
- चित्रा पंवार
मेरी कविता की लड़की से
कहना चाहता हूँ
तुम दुनिया की सबसे अच्छी लड़की हो
जैसे ही कहने को होता हूँ
वह कहती है
‘मेरी तो कुड़माई हो गई
जा किसी और को कविता में ला’
___________
हरप्रीत कौर
एक शेर रट ख़ुद को ग़ालिब मीर बताने वाले लड़के
बिन चावल बिन दूध, बात की खीर बनाने वाले लड़के
और हक मे उठे तो कलमों को शमशीर बनाने वाले लड़के
उस दौर का जादू, क्या जाने, ये रील बनाने वाले लड़के ।
- नीलोत्पल मृणाल |
@authornilotpal
पगडंडियों को प्यार था घास से
घास को ओस से
ओस को नंगे पैरों से
एक दिन
उन पैरों ने
जूते पहने
पगडंडियों को
कोलतार पिलाया गया
कोलतार ने घास को निगल लिया
आगोश में ले लिया
और अगली सुबह
ओस की बूंदें
अपना पता भूल गयीं
- स्मिता सिन्हा
समय के
सबसे अंतिम छोर पर,
यदि तुम्हारा प्रश्न यही रहा,
क्या तुम मुझसे अब भी प्रेम करते हो?
तो मेरा हृदय,
ठीक वैसे ही स्पंदित होगा,
जैसे पहली बार हुआ था।
● विजय बागची
कुछ दिनों के लिए
पतंगें उड़ाना स्थगित कर दो
अधूरी छोड़ दो
अपनी पसंदीदा किताब
बरसात पर नई कविता लिखने के लिए
अगले बरस का इंतजार करो
आओ ,
अभी मिलकर उस जादूगर को खोजें
जो संसार की सारी बंदूकों को फूलों में बदल दे
और सैनिकों को प्रेमियों में....
*****
@456_payal
घर
----
अपने घर से मीलों दूर
इस अजनबी शहर में
कभी -कभी
आधी रात को -
दस बाय बारह का यह कमरा
रेल के डिब्बे में तब्दील हो जाता है
और दौड़ने लगता है
घर की तरफ ।
- मणि मोहन
जो जाना चाहते थे,
मैंने उन्हें जाने दिया
एक प्रेम भरी मुस्कान के साथ
जो ठहरना चाहते थे
मैंने उन्हें जगह दी
और उनके पास बैठ गया
जब सुख मिला
मैंने सब में बाँट दिया
जब दुःख आया
सबने मुझसे बाँट लिया
सरल होते जाना
मनुष्य होने की ओर
पहला कदम है
हेमन्त ��रिहार
मैं तो तुमसे बातें करती हूं
लोगों को लगता है
मैं कविता लिखती हूँ।
जिस दिन अपनी ही लिखी
कविता बहुत पसंद आ जाए ,
लगता है तुमने मेरा माथा चूम लिया ।
रात को डायरी खुली रखती हूं,
क्या पता कब तुमसे
बात करने का मन बन जाए।
- पुष्पिंदरा चगति भंडारी
'अलविदा 2023'
पुराने कैलेंडर
ठीक उसी तरह उतरे हैं खूंटी से
जैसे वियोग पर आँखों से आँसू
सच...!!
कितना मिलता-जुलता है दुःख
बीते वर्ष और रीते प्रेम का ।
- कुलदीप सिंह भाटी
प्रेम को पा कर सब सुंदर है ,
प्रेम को खोकर भी ...
जो प्रेम के प्रत्युत्तर में प्रेम पा लेंगे...
वे जीवनभर प्रेम को संभालेंगे...
और जो प्रेम के प्रत्युत्तर में नहीं पा सकेंगे प्रेम...
उन्हें स्वयं प्रेम संभालेगा...
_______________
पायल |
@456_payal
मैं चाहूंगा
मेरे प्राण मुक्त होने से ठीक पहले
तुम समीप रहो
ज़ब मेरी आँखे जड़ बन जाये
तुम उनमे देखना व
मेरी पलकों को ढाप देना
मैं तुम्हारी छवि लिये जाना चाहता हूँ
ताकि मैं उस ईश्वर से कह सकूं
की हृदय में ही नहीं वरण
आख़री बिंदु पर
आँखो में भी मैंने तुम्हे ही रखा!
- अजय तुलस्यान