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कविता-ख़ोर

@samridhi85

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अंतर्गमन की पहली कविता ---

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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
तुम्हें खोने का निराकार सूनापन मेरे साथ चलेगा बाबा ! तुम्हारी याद सिमटी रहेगी मेरी अस्त-व्यस्त दिनचर्या में तुम्हारे नाम का सुकून आ मिलेगा रोटी में नमक बनकर और बहुत दिनों बाद जब लगने लगेगा मैं भूल गई तुम्हें मेरे चेहरे की लकीरों से तुम झलकने लगोगे बाबा ! ©समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
लड़कियाँ ब्याही जाती हैं सरकारी मुलाज़िमों से ज़मीनों से दुकानों से बस वो ब्याही नहीं जातीं तो सिर्फ़ अपने प्रेमियों से.... ***** अज्ञात
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
2 years
बुद्ध लौट आएं तो कहना उनसे यशोधरा हो गई भरे संसार में ही संन्यासिनी उसे नहीं मिली फ़ुर्सत घर और नवजात से मुँह मोड़कर जाने की वह जान गई कि पुरुष जो निर्वाण जंगलों के एकांत में पाता है उसे एक स्त्री भरे गृहस्थ में ही पा लेती है बुद्ध आएं तो कहना यशोधरा पहले ही पा गई बुद्धत्व
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
7 years
हाँ ! कहानियों को कविताओं की दरकार नहीं है !! पर हर #कविता को पूरा होने के लिये किसी की #कहानी से गुजरना पड़ता है...
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
1 year
पिता के जाने के बाद जब अगले दिन उठा तो रीढ़ में एक हड्डी कम थी मैं पहले से ज़्यादा चौकस उठा आसपास हर चीज़ का ग़ौर से जायज़ा लिया जैसे दुनिया को पहली बार देखा हो धूप के चश्मे के बिना तब से रोज़ सवेरे उठता हूँ एक सिपाही की मुद्रा में सोचता हूँ पिता कहीं से देखें तो शर्मिंदा न हों
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
माँ के रहते घर कभी खाली नहीं होता पिता के बाद घर कभी भरता नहीं ©समृद्धि
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कविता-ख़ोर
3 years
कविता-तिहाई _____________ प्रेम में हम तीन थे मैं तुम और ईश्वर मुझमें हमेशा तीन थे तुम प्रेम और ईश्वर ईश्वर में तीन थे तुम मैं और प्रेम ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
4 years
स्त्री...तुमपर लिखा तो बहुत कुछ गया पर तुम्हें समझा गया...बहुत कम || ©समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
2 years
किसी से प्रेम करना मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने जैसा है.... हम नहीं जानते कि वहाँ ईश्वर मिलेंगे या नहीं फिर भी हम यह यात्रा पूरे विश्वास से करते हैं || ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
1 year
तुम तक पहुँचने के कई रास्ते थे पर मैंने विरह को चुना... ईश्वर तक पहुँचने के कई रास्ते थे पर मैंने तुम्हें चुना... मृत्यु तक पहुँचने के कई रास्ते थे पर मैंने प्रेम को चुना || ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
5 years
मुझे तुम याद हो जैसे याद रहता है तसल्ली से खाया निवाला जैसे बाज़ार में कोई बेतहाशा ढूँढ़ता है खोई हुई अठन्नी तुम याद आती हो जैसे याद रह जाते हैं पुराने घर किसी नदी की आत्मा पेड़ का ठूँठपन हाँ बिल्कुल वैसे ही और उतना ही याद आती हो जितना भुलाने के लिए ज़रूरी है #kavita ख़ोर
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@samridhi85
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4 years
चौराहे पर दुर्घटनाग्रस��त होकर तड़प रहा है एक देश और हम डाक्टर के बदले पुलिस का इंतज़ार कर रहे हैं। ***** रामदरश मिश्र
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
ओ पगली लड़की ! तुम पिंजरे की नहीं जँगलों की हो स्थिरता नहीं उत्पात चुनो अपनी माँओं को जन्म दो बेटियों को रीढ़ कोई पर्यावरणविद कभी नहीं बताएगा कि एक ज़िद्दी लड़की दुनिया का सबसे लुप्तप्राय जीव है ©समृद्धि #womenpower
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
5 years
ज़रूरी ये नहीं कि तुम कितनी देर प्रेम में रहे ज़रूरी ये है कि तुममें प्रेम कितनी देर रहा #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
3 years
स्त्री... दो घरों की होकर भी बेघर होती है ©समृद्धि
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4 years
तुम्हारा सुख वह भाँप जाएँगे दुःख तुम्हें स्वयं प्रमाणित करना होगा #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
5 years
अगले जन्म मैं तुम्हें  प्रियसी नहीं  भिक्षुणी बनकर मिलूँगी  एकदम खाली हाथ  मैंने मुट्ठी भर-भर  तुम्हें जो सर्वस्व दिया है  क्या तुम अंजुरी भर  तब डालोगे मेरी झूली में ? #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
4 years
एक जो पुण्य करता है वह देवता बन जाता है, जो पाप करता है वह पशु बन जाता है, और जो प्रेम करता है वह आदमी बन जाता है । ***** गोपलदास ‘नीरज’ #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
अँधेरे के पार कोई नहीं पहुँच पाया वहाँ तक सिर्फ़ प्रार्थनाएँ जाती हैं ©समृद्धि
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कविता-ख़ोर
1 year
मैं नहीं चाहता था कि इतना मामूली कर दूँ अपने प्रेम को कि ईश्वर से माँगना पड़े तुम्हें मैं चाहता हूँ कि ईश्वर स्वयं तुम्हें सहेजकर मुझ तक लाएं और मैं पा लूँ तुम्हें और पा लूँ ईश्वर || ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
जब प्रेम का आँगन बुहारते-बुहारते तुम्हारी पीठ पर पड़ जाएँगे बारिशों के निशान तब ईश्वर आएगा भिक्षु पात्र लिए तुम्हारे आँगन की मिट्टी लेने तुम्हारे आँसुओं से चौका लीपने #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
आज लगभग 4 वर्षों की ट्विटर यात्रा के बाद 15,000 लोगों से जुड़ना संभव हो पाया है | मेरे लेखन को इतना मान और प्रोत्साहन देने के लिए शुक्रिया..मेरी कलम आप सबकी ऋणी है | आप सभी गुणीजनों का प्रेम और आशीर्वाद यूँ ही बना रहे| माँ सरस्वती सब पर कृपा करें || सादर आभार ©समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
11 months
तुम अन्धकार के विरुद्ध की गई सबसे उम्दा रचना हो अपनी लौ को पहचानो ! "शुभ दीपावली" ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
3 years
हमारे सिर से साया छिन गया पिता चले गए अब दूर तक धूप ही धूप है
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
दोगले लोग जब भी मिलते हैं तो बड़े प्यार से मिलते हैं || ©समृद्धि #kavita ख़ोर #अज्ञानी_का_ज्ञान
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
यात्राएँ कहीं भी पहुँचने के लिए नहीं की जातीं यात्राएँ की जातीं हैं ताकि कुछ देर अपने भीतर भी सुस्ताया जाए #kavita ख़ोर #समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
2 years
लड़कियाँ पीपल सी होती हैं उन्हें कोई नहीं बोता वह बस उग आती हैं चाहे कितनी ही बार काट दो जड़ें उनकी दोबारा पनप जाएँगी वह तुम्हारी उपेक्षा से नहीं मरेंगी यही उनका सबसे बड़ा हुनर है जंगल की भांति वह जुटा ही लेंगी अपनी हवा अपनी बारिश अपनी नदियाँ वह बंजर में भी उपज जाएँगी समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
एक कुशल तानाशाह जनता को नहीं मारता सोच को मारता है, वह अस्पताल और स्कूल नहीं बनवाता मंदिर बनवाता है; एक कुशल तानाशाह न्यायलय नहीं तुड़वाता वह न्याय और समता की विचारधारा को तोड़ता है| वह इतिहास पर अपनी छाप देखने के लिए लिखवाता है नया इतिहास और छुपा देता है साक्ष्य | ©समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
मेरे पिता का एक पता है मेरे पति का भी एक दिन मेरे भाई और पुत्र के भी पते होंगें पर मेरा निजी कोई पता नहीं इन सब पतों पर जहाँ भी मैं रहती आई लापता रही मैं सबसे छोटी इकाई पर अपना नाम लिखा देखना चाहती हूँ मैं चाहती हूँ एक पते पर मेरा घर #kavita ख़ोर #समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
1 year
पहली बारिश की ख़ुशबू में छज्जों से उतरती हैं बूँदें दूर कहीं रेडियो से उठता है गीत "तुम आ गए हो नूर आ गया है" याद की ड्योड़ी पर आँखों के आँगन में मन के बँद कमरों में निरंतर बरसते तुम रिसते तुम भीगते तुम और सीलती मैं पहली बारिश की ख़ुशबू में खोती मैं..मिलते तुम ©समृद्धि
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कविता-ख़ोर
10 months
मैंने तुम्हारे लौट आने की कोई प्रार्थना नहीं की बस तुम्हें अपनी नास्तिकता का ईश्वर मान लिया || ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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5 months
माँ तुम्हें कुछ कम माँ होना चाहिए था ताकि तुम्हारे हिस्से आ पाती थोड़ी ज़्यादा नींद कुछ कम थकान थोड़ा लम्बा वसंत और ज़रा देर से बुढ़ापा पर तुमने हर बार चुना अपनी क्षमता से कहीं ज़्यादा माँ होना || ©समृद्धि #MothersDay
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कविता-ख़ोर
3 years
मैं केवल दो प्रकार के लोगों को जानती हूँ अच्छे और बहुत अच्छे मैं नहीं मानती कि अच्छाई के अलावा इंसान की कोई अन्य फितरत भी है और यदि है तो वह जो भी हो इंसान क़तई नहीं है || ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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5 years
एक बरगद है जिसकी छाँव में बैठे हो तुम जब खो जाएगा वो तब तुम जानोगे धूप क्या होती है नीड़ क्या और क्या होता है उड़ना #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
3 years
कौन जात हो भाई? “दलित हैं साब!” नहीं मतलब किसमें आते हो? आपकी गाली में आते हैं गन्दी नाली में आते हैं और अलग की हुई थाली में आते हैं साब! मुझे लगा हिन्दू में आते हो! आता हूँ न साब! पर आपके चुनाव में। ©बच्चा लाल ‘उन्मेष’ #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
3 years
इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा कुछ भी नहीं है न ईश्वर न ज्ञान न चुनाव ©सर्वेश्वरदयाल सक्सेना #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
5 years
इतना खाली कभी कुछ नहीं हो सकता जितना खाली होता है भरा हुआ एक मन इतना भरा कहीं कभी नहीं रहता जितनी भरी होती हैं दो खाली आँखें अंतस की सारी शून्यता निरंतर फैलकर निगल जाएगी किसी दिन ये अम्बर इतना विस्तृत कहीं कुछ नहीं होता पास बैठे दो लोगों के बीच पसरी तन्हाई जितना #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
6 years
कोई तुम से पूछे कौन हूँ मैं कह देना कोई खास नहीं बस तन्हाई की गाँठ में रेशमी सा इक धागा है सुस्त सीली दोपहरों से जो धूप चुराकर भागा है जिससे ऐसी भी कोई आस नहीं जिसकी तृष्णा में भी प्यास नहीं कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं कह देना तुम्हें याद नहीं ! #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
5 years
इससे पहले कि निर्धारित हो कौन है देश का गद्दार स्पष्ट करो "देश" का आशय इससे पहले कि राष्ट्रद्रोह का अभियोग चले बताओ "राष्ट्र" क्या है? यदि देश और राष्ट्र की परिभाषाएँ संकुचित और सुविधाजनक हैं तो पत्थर माथे ढूँढ़ लेंगें जिनमें से एक मेरा और कभी आपका भी हो सकता है #k ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
मेरी भाषा एक थाल है जिसकी सारी सज्जा है आडम्बर तुम आओ ! मेरे आतुर शब्दों से  चुन लो प्रेम... मेरी भाषा एक परसा हुआ थाल है  तुम आओ ! एक निवाले में चुन लो समग्र आशय जूठा करो मेरा मौन... #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
मैं नहीं जान पाई कि प्रेम एक असीम संभावना की तरह सदा मेरे भीतर था बीज कहाँ जान पाते हैं कि उनके भीतर ही होते हैं फूलों के तमाम रंग और ख़ुशबू... ©समृद्धि
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कविता-ख़ोर
5 years
अगले जन्म मैं तुम्हें  प्रेयसी नहीं  भिक्षुणी बनकर मिलूँगी  एकदम खाली हाथ  मैंने मुट्ठी भर-भर  तुम्हें जो सर्वस्व दिया है  क्या तब तुम अंजुरी भर  डालोगे मेरी झोली में ? #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
2 years
जो तुम्हारा प्रेम नहीं लौटा पाया वह स्वार्थी नहीं था, न ही निठुर वह बस वंचित था इसलिए तुम्हारा दिया सारा प्रेम संजोकर चला गया तुम उसे अपने ऋण से मुक्त कर दो | ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
1 year
लिखने के बाद मैंने कविताओं से क्षमा माँगी क्षमा माँगी पढ़ने और सुनने वालों से क्योंकि मैंने भाषा का निजी इस्तेमाल किया था भावों के लिए और भावों के लिए तो शब्द हमेशा से ही अपशब्द रहे हैं इसलिए मैंने भावों से भी क्षमा माँगी मैंने ईश्वर से क्षमा माँगी हर कविता के बाद ©समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
माँ के दुःख पुश्तैनी थे जो उम्र के साथ गठिया की तरह उसकी हड्डियों में उतर गए माँ के बारे में ये कल्पना कर पाना कि कभी उसके दुःख निजी थे कितना मुश्किल है ! ©समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
मैंने तुम्हें पढ़ा कविता की भाँति और सुना संगीत की तरह पर तुम्हें याद रखा आँखों की अबोली भाषा में और अनूदित करता रहा अपने दुःख की ख़ामोशी में ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
5 years
घाटा मैं तुम्हें उतना ही प्रेम दे सकती हूँ जितना की ऋण बस शर्त ये है कि ऋण तुम्हें चुकाना होगा बाकी प्रेम में घाटे की आदत है मुझे ! #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
साभार @Hindi_panktiyan
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
कबीरा कुंआ एक हैं पानी भरैं अनेक.. बर्तन में ही भेद है, पानी सबमें एक..!! ©कबीरदास #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
सत्ता कहती है इतने ही लोग तो मारे गए कविता पूछती है एक भी इंसान क्यों मारा गया ©पंकज चतुर्वेदी @PANKAJ_C1 #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
लड़कियों के लिए नहीं बनें स्वर्ग या नर्क उनके लिए केवल कारागार बनें हैं वे भोगती आईं हैं स्वर्गों में नर्क और कर लेती हैं नर्क में भी स्वर्गीय अनुभूतियाँ मरघट की मिट्टी हड्डियों में लिए ख़ुद ही करती आईं हैं तर्पण अपने #kavita ख़ोर #समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
मेरे पिता का एक पता है मेरे पति का भी एक दिन मेरे भाई और पुत्र के भी पते होंगें पर मेरा निजी कोई पता नहीं इन सब पतों पर जहाँ भी मैं रहती आई लापता रही मैं सबसे छोटी इकाई पर अपना लिखा देखना चाहती हूँ मैं चाहती हूँ एक पते पर मेरा घर #kavita ख़ोर #समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
खोजने से पाई गई चीज़ें खो जाती हैं... पर खोने से पाई गई चीज़ें अक्सर खोज ली जाती हैं... #kavita ख़ोर #अज्ञानी_का_ज्ञान
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कविता-ख़ोर
3 years
प्रेम में नहीं कविता में नहीं नृत्य नहीं...न ही संगीत में नेता में नहीं मंत्री-संतरी में नहीं न ही प्रधानसेवक में संविधान में नहीं विज्ञान में नहीं वेद-पुराण में नहीं एक भूखे की नज़र से देखो जीवन की सारी ख़ूबसूरती रोटी के स्वाद में है! ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
4 years
मैंने उसे अपने दुःख में रखा, सुख में रखती तो खो बैठती || ***** समृद्धि मनचन्दा #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
समस्त दुनिया के प्रकाश से ज़्यादा रोशनी वास करती है एक निर्मल हृदय में मेरे दोस्त ! तुम अन्धकार के विरुद्ध की गई सबसे उम्दा रचना हो अपनी लौ को पहचानो ! "शुभ दीपावली" #kavita ख़ोर #समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
सुख आएगा भर देगा तुम्हें और छलक पड़ेगा दुःख आएगा तोड़ेगा तुम्हें और पक्का करेगा || ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
पिता उम्रभर सिखाते रहे कभी हँसकर कभी कहकर कभी डपटकर कभी सह कर पर मैं सीखा उनके जाने के बाद पिता के जाने के बाद मैंने पाया पिता कहीं गए नहीं भीतर जड़ पकड़ चुके हैं मैं सीखा उनके जाने के बाद कभी हँसकर कभी रोकर कभी सह कर कभी होकर पिता के जाने के बाद मैंने पाया खुद को पिता होते
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
हो सकता है कि कोई मेरी कविता आख़िरी कविता हो जाए मैं मुक्त हो जाऊँ... ©रघुवीर सहाय #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
मैंने स्त्री होने के नाते कितना ही विरोध किया मैंने स्त्री होने के कारण उतना ही शोषण भोगा स्त्री होना ही एकमात्र वजह है कि मैंने नहीं छोड़ा स्त्री होना #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
4 years
पर्वत ने कभी ताल से नहीं कहा कि मेरी विशालता देखो और अघाओ अम्बर कभी पर्वत से नहीं कहता मेरा विस्तार देखो और सकुचाओ न ही कभी चींटी अपने आकार पर रोती है यह सब यथास्थान यथातत्व हैं ईश्वर का इन सबके साथ उठना बैठना है वह अपने पाषाण देवालय के बाहर खड़ा अट्टहास करता है #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
" कुर्सी है, तुम्हारा ये जनाज़ा तो नहीं है कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते" ©इरतज़ा निशात #COVID19India
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
आया था कोई पत्थरों के पास उन्हें देखा...सहलाया और बोला - मनुष्य बनो ! पत्थरों ने भी देखा उन्हें और उत्तर दिया -- हम नहीं हो पाएँगें उतने कठोर अभी । ****** एरिड फ्रॉयड
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
मैं संसार का सारा प्रेम तुम्हें अर्घ्य दूँगी तुम बदले में मेरी झोली में डाल देना अंतर्गमन की पहली कविता ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
ईमानदार व्यक्ति धीरे-धीरे ख़ामोश हो जाता है | ©समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
1 year
मैंने उससे नहीं कहा " रुक जाओ !! " फिर भी वह रुका रहा मेरे भीतर एक सम्पूर्ण अनुपस्थिति बनकर || ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
5 years
भाषा तुम्हें एक दिन अटूट मौन सिखला दे यही तुम्हारी भाषा का ध्येय होना चाहिए मौन ककहरे का पहला अक्षर भाषा ही तो है और उसके पार बिखरा है केवल अनन्त कलरव #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
5 years
क्या तुम दोगे मुझे उतनी जगह जितनी एक शहर देता है किसी नदी को चुपचाप गुज़र जाने के लिए? जो है और जो नहीं है और जो कभी नहीं होगा उस सबके बीच किसी सम्भावना जितनी उतनी जगह? एक घूँट एक सोते एक प्यास एक गोते के बीच जो महीन क्षितिज पसरा रहता है उतनी जगह बोलो! दे सकोगे? #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
2 years
माँ तुम्हें कुछ कम माँ होना चाहिए था ताकि तुम्हारे हिस्से आ पाती थोड़ी ज़्यादा नींद कुछ कम थकान थोड़ा लम्बा वसंत और ज़रा देर से बुढ़ापा पर तुमने हर बार चुना अपनी क्षमता से कहीं ज़्यादा माँ हो जाना || ©समृद्धि #MothersDay #माँ_तुझे_प्रणाम
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
अगर आपके लिए किसी किसान की मौत सिर्फ़ आत्महत्या है बलात्कार एक दुर्घटना मृत्यु एक आँकड़ा गरीबी एक महामारी और महामारी मात्र बुरा संयोग तो बधाई हो ! आपसे बड़ा संतोषी कोई नहीं ! आप अपनी ही चिता पर आग के इंतज़ार में निश्चिन्त लेटे हैं #kavita ख़ोर #समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
5 years
हे पार्थ ! तुम ही दृष्टि तुम ही दृश्य तुम ही हो दृष्टा और तुम ही दृष्टांत बस एक बार आँखें बंद करके देखो सब कितना दृष्टिगोचर है #गीता_सार #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
6 months
प्रेम में किसी को छलना ईश्वर को धोखा देना है तुम्हें क्षमा तो मिल सकती है पर शांति नहीं मिल पाएगी ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
5 years
मैं तुम्हें इक खाली पात्र दूँगी जिसमें समा सके अम्बर जितना प्रेम तुम मुझे एक पात्र प्रेम देना जिसे मैं अम्बर मान लूँगी तुम प्रेयस हो मैं भिक्षुणी हमें बार बार मिलना होगा अम्बर और प्रेम में सामंजस्य बनाए रखने को #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
9 months
एक दुःख जो मुझे पालता है एक दुःख जो मुझे ढालता है एक दुःख जो गिर गया कहीं एक दुःख जो मुझे सालता है एक दुःख जो अभी मिला नहीं एक दुःख जो मुझे टालता है मैं हर उस दुःख का ऋणी हूँ जो दुःख मुझे सँवारता है | ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
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वो रोती बहुत है ! ! इसलिए नहीं कि खो दिया किसी को इसलिए कि कोई पा ना सका उसे ! #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
प्रेम में पड़ा मनुष्य कितना ईश्वरीय लगता है और प्रेम में पड़ा ईश्वर कितना मानवीय ! ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
एक स्त्री के कारण तुम्हारा रास्ता अँधेरे में नहीं कटा  रोशनी दिखी इधर-उधर       एक स्त्री के कारण एक स्त्री  बची रही तुम्हारे भीतर। ©मंगलेश डबराल #kavita ख़ोर #WomensDay
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कविता-ख़ोर
4 years
हमारे दुःख कुछ और नहीं हमारे सुखों की समाधि हैं हम बार बार उन समाधियों पर अपनी आस्था के फूल चढ़ाते हैं हम बार बार मरघट जाते हैं सुख के पीछे चलते दुःख को काँधे पर उठाए #kavita ख़ोर #समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
5 years
वो बनी थी जाने कितने दर्दों से कितनी ही किताबों और अर्ध चँद्रों से वो बनी थी गहरे स्याह से कितने ही सूर्यास्त कितनी ही छाँह से वो बनी थी जैसे बनती है धूप बारिशें और नदियाँ जैसे बनता है विलोप और मैं बना था रास्तों शहरों और भटकन से मैं बना था...उससे #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
हम उगेंगे स्मृति के दूरस्थ सिरे पर और लगभग स्तब्ध करते हुए वक्त को खो जाएँगे उस बूँद में जिससे सागर बना था #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
कुछ लड़कियाँ लम्बे रूट की बस होती हैं जो नहीं उठातीं आसपास जाने वाली सवारियाँ कुछ लड़कियाँ होती हैं चंदन की पौध जो सांपों को अपने दामन में पालने का दम रखती हैं कुछ लड़कियाँ होती हैं बेग़म अख़्तर की ग़ज़ल जो बहुत कम लोगों को पसन्द आती हैं **** मंजीत कौर टिवाणा
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
आप बुरे वक्त में मदद नहीं कर सकते न कीजिए पर किसी की मज़बूरी का गलत फ़ायदा उठाने की कोशिश न करें... आपको शायद अंदाज़ा न हो पर लोग बड़ी मुश्किल से पैसे और संसाधन जुटा रहे हैं इस वक्त आपकी ठगी से किसी की जान पर बन सकती है..विनती है इतने मनुष्यता रखिए 🙏🙏🙏
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
5 years
कोई धूनी जली हुई है कोई अलख जगा हुआ है दुनिया सारी छूट रही है बस दाग प्रेम का लगा हुआ है! मीरा प्यासी घूम रही है मरघट सारा जगा हुआ है कोई तंद्रा टूट रही है बस औघड़ रंग लगा हुआ है! विरहन मस्तम नाच रही है कलंदर मन झूम रहा है डूब रही है नब्ज़ रात की चाँद फ़क़ीरी चढ़ा हुआ है!
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कविता-ख़ोर
3 years
जाता हुआ साल हमें बहुत कुछ सिखा गया हम गिरे,उठे और लड़े हम टूटे लेकिन हारे नहीं ठगे गए पर हमने विश्वास करना नहीं छोड़ा हमने जाना कि मुसीबत में हम कोई जात या धर्म नहीं सबसे पहले इन्सान हैं इस साल ने हमें तोड़ा,जोड़ा और बेहतर बनाया यह साल मील का पत्थर था अलविदा #2021 ©समृद्धि
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
"चाहे कोई दार्शनिक बने, संत बने या साधु बने, अगर वह लोगों को अँधेरे का डर दिखाता है तो ज़रूर अपनी कंपनी का टार्च बेचना चाहता है।" ©हरिशंकर परसाई #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
2 years
चूल्‍हा मिट्टी का मिट्टी तालाब की तालाब ठाकुर का भूख रोटी की रोटी बाजरे की बाजरा खेत का खेत ठाकुर का बैल ठाकुर का हल ठाकुर का हल की मूठ पर हथेली अपनी फ़सल ठाकुर की कुआँ ठाकुर का पानी ठाकुर का खेत-खलिहान ठाकुर के गली-मुहल्‍ले ठाकुर के फिर अपना क्‍या? गाँव? शहर? देश?
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
7 months
ओ पगली लड़की ! तुम पिंजरे की नहीं जंगलों की हो स्थिरता नहीं उत्पात चुनो ! अपनी मांओं को जन्म दो और बेटियों को रीढ़ कोई पर्यावरणविद् यह कभी नहीं बताएगा कि एक ज़िद्दी लड़की दुनिया का सबसे लुप्तप्राय जीव है || ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
3 years
मैं आस्था के अंतिम सिरे से तुम्हें पुकारता हूँ ईश्वर मेरी डबडबाती आस को सहारा दो !! ©समृद्धि #healing_prayers
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
6 months
यह सम्भावना है कि हम मिलेंगे यह निश्चित है कि मैं करूँगा इंतज़ार यह सम्भावना है कि मैं जीऊँगा यह निश्चित है कि तुम्हारे बिना अधूरा यह सम्भावना है कि मैं मर जाऊँगा यह निश्चित है कि तुम्हें करते हुए याद यह सभी सम्भावनाएँ निहित हैं एक निश्चय में कि मैं करता हूँ प्यार ©समृद्धि
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कविता-ख़ोर
5 years
जैसे चोट लगने से बहुत पहले ही देह में दबी होती है पीड़ा जैसे स्त्री के भीतर प्रसव से पहले ही पैठ होती है एक माँ की और पुरुष की हड्डियों में जैसे जम जाता है उसके पुरखों का पसीना वैसे ही प्रेम से पहले ही हम एक दूजे से सने थे ईश्वर सीझ गया था हमें #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
5 years
एक हँसती हुई औरत होती है एक मंथर नदी जो अपने किनारों की मर्यादा चुपचाप रखती है एक रोती हुई औरत होती है दावानल और उसके भीतर का तमाम पानी जलावन पर एक सोई हुई औरत दरअसल कर रही होती है मरने का अभ्यास खुली आँखों ना देखने का स्वांग #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
3 years
सुख में डूबे व्यक्ति से बार-बार मिलना उसकी ऊँचाई जानने के लिए और दुःख में डूबे व्यक्ति से बार-बार मिलना उसकी गहराई जानने के लिए ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
4 years
इस दुनिया में कितनी दुनियाएँ ख़ाली पड़ी रहती हैं, जबकि लोग ग़लत जगह पर रहकर सारी ज़िंदगी गँवा देते हैं। ©निर्मल वर्मा #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
3 years
इतनी रेत ! मेरे अंदर आई कहाँ से ? न कोई समंदर पिया  न मरुथल लांघा  न ब्रह्माण्ड निगला तो फिर इतनी रेत ?? एक प्रीत का बूटा था  जिसपर चम्पई पीर उगती थी बस वही उखाड़ा है... पर इतनी रेत !! ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
4 years
मेरी पीठ पर हैं उसकी आँखों के दाग़ बहुत देर तक उसने मुझे जाते देखा था | © समृद्धि #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
5 years
हाय ! कितना दुःख उसमें कितना सुख तेरा आँगन तेरी ही मिट्टी तेरी सभी बारिशें मैं ना जाने कौन कौन मेरा क्या मुझमें मेरा कुछ ? गीली मन की गलियाँ सूखे सारे चौंक चौबारे सूखा सारा सुख बासी ये काया झपकी सी दुनिया पूरी बस खरा तेरा दुःख ! #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
4 years
यह जानते हुए भी कि आगे बढ़ना निरंतर कुछ खोते जाना और अकेले होते जाना है मैं यहाँ तक आ गया हूँ **** सर्वेश्वरदयाल सक्सेना #kavita ख़ोर
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कविता-ख़ोर
5 years
जिसे तुम्हारी देह रोक ना सके फिर भी भीजी रहे उसमें जिसे तुम्हारी आँखें देख ना सकें फिर भी खोजा करें जिसे तुम्हारा मन बुला ना सके फिर भी छू आए वही अनन्त अनुगुँजित स्पंदन प्रेम है वही है सृष्टि की नब्ज़ #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
5 years
माँ अक्सर रसोई में कुछ बड़बड़ाया करती है मेरे देखते ही देखते वो काठ हो गई पिता कम ही दिखते हैं अबकी जब दिखे तो पहले से कुछ कम था उनका कद जब से तुम गए हो लम्बी हो गई है उनकी उम्र और दुःख जो रहा है सदैव घुलनशील...चट्टान हो चला है कहना तुम कब आओगे ? #kavita ख़ोर
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@samridhi85
कविता-ख़ोर
2 years
एक स्त्री तुम्हें उपहार देती है देह और यौवन ही नहीं अपनी चुप्पी और रातें भी वह देती है तुम्हें उपहार में प्रसव पीड़ा और थकान अपनी उदासी और अनिद्रा भी एक स्त्री का यह भी तो है उपहार कि वह ख़ुद में बनी रहने देती है तुम्हारी याद तुम्हारे चले जाने के बाद भी ©समृद्धि #kavita ख़ोर
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