स्त्री की चाहत एक सुमद्र के समान होती है, एक ऐसा समुंद्र जिसके बूंद बूंद में संस्कार,कामुकता,
कामवासना का अनोखा मेल है | इस समुन्द्र में हर पुरुष तैरना चाहता है, समुन्दर की गहराई नापना चाहता है, लेकिन उस पुरुष को कौन समझाए की इसकी गहराई अनन्त है |
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पुरुष के लिए स्त्री एक फूल की तरह है जिससे होकर वो गुजरना चाहता है... पर स्त्री के लिए पुरुष एक सागर है जिसमे वो डूब जाना चाहती है... प्रेम दोनों ही चाहते है परन्तु विपरीत मूल्यों पर |
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परमात्मा ने स्त्री को स्त्री बनाया है , वह अपने स्त्रीत्व को पूर्ण रूप से प्रकट करे यही साधना है। स्त्रीत्व है करुणा, क्षमा, प्रेम, त्याग, सपर्पण, उदारता,सहिष्णुता, वीरता और धीरता । पुरुष त्यागी हो सकता है, लेकिन स्त्री ही तपस्विनी है ।
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स्त्रियों का प्रेम पुरूषों के लिए हमेशा से एक रहस्य रहा है,कोई स्त्री प्यार में क्या चाहती है, यह जान पाना किसी भी पुरुष के लिए बहुत मुश्किल और कई बार तो असंभव भी हो जाता है...इस रहस्य को जानने की कोशिश में जानें कितने प्रेमी दार्शनिक,कवि और कलाकार बन गए।।
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जिस तरह एक पुरुष और स्त्री एक-दूसरे के आधे हिस्सा हैं,उसी तरह प्रेम और ध्यान भी हैं।ध्यान पुरुष हैं प्रेम स्त्री हैं।ध्यान और प्रेम के मिलन में ही स्त्री पुरुष का मिलन होता हैं।इस मिलन में हम उस पारलौकिक मानव का निर्माण करते हैं जो न तो पुरुष हैं और न ही स्त्री
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यदि तुम किसी व्यक्ति से बहुत गहराई से प्रेम किये चले जाते हो तो धीरे - धीरे कामवासना नष्ट हो जाती है | आत्मीयता इतनी सम्पूर्ण हो जाती है, की कामवासना की कोई आवश्यकता नहीं रहती, प्रेम स्वयं मे पर्याप्त होता है |
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जब कभी भी पुरुष के किसी दोष का दंड एक स्त्री को चुकाना पड़ा है...स्त्री ने सफाई देने से बेहतर समझा है आजीवन पत्थर हो जाना।।
#अहिल्या
~ अविनाश कर्ण
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स्त्री की ओर झुकाव दो तरह से हो सकता है,एक वासना के कारण औऱ दूसरा प्रेम के कारण ! वासना लालची चित्त की अवस्था है औऱ प्रेम निःस्वार्थ भाव दशा! वासना सँसार है औऱ प्रेम आध्यात्म है ! जो समय के साथ बढ़ता जाये वो प्रेम है औऱ जो समय के साथ घटता जाये वो वासना है।।
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“स्त्री को चाहिए कि वह स्वयं को पुरुष के भोग की वस्तु मानना बन्द कर दे। इसका इलाज पुरुष की अपेक्षा स्वयं स्त्री के हाथों में ज्यादा है। उसे पुरुष की ख़ातिर, जिसमें पति भी शामिल है, सजने से इनकार कर देना चाहिए।"
-- महात्मा गाँधी
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जिस पुरुष के राज मे स्त्री दुखी है उस पुरुष के घर में कभी खुशी नही आ सकती, जो स्त्री को नहीं समझ सकता वो वेद और उपनिषद भी नही समझ सकता | ईश्वर का सबसे सुन्दर शास्त्र नारी है जिसने उसे पढ़ लिया समझ लिया उसे फिर किसी शास्त्र की जरुरत नही है |
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उन्माद और ज्ञान में जो भेद है,वही वासनाऔर प्रेम में है।उन्माद अस्थायी होता हैऔर ज्ञान स्थाई।कुछ क्षणो के लिए ज्ञान लोप हो सकता है;पर वह मिटता नहीं।जब पागलपन का प्रहार होता है,ज्ञान लोप होता हुआ विदित होता है;पर उन्माद बीत जाने के बाद ही ज्ञान स्पष्ट हो जाता है
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हमारे यहाँ विवाह का आधार प्रेम और इच्छा पर नहीं, धर्म और कर्तव्य पर रखा गया है। इच्छा चंचल है, क्षण-क्षण में बदलती रहती है। कर्तव्य स्थायी है, उसमें कभी परिवर्तन नहीं होता।
~ प्रेमचंद
बंगाल में पूर्व कम्युनिस्ट सांसद लक्ष्मण सेठ ने 78 साल की उम्र में 30 साल की मानसी डे से दूसरा विवाह किया। लक्ष्मण सेठ के दो संतानों से 5 पोते पोतियां हैं।
स्त्री को पाकर, स्त्री को समझकर, उसे अपनी बाँहों और आत्मा में महसूस करके ही प्रकृति की गति और प्रकृति की सुंदरता को और प्रकृति के रहस्य को लिया, भोगा और समझा जा सकता है।
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वासना के भिक्षा पात्र में कभी भी प्रेम नहीं समा सकता। इसलिए स्त्री उस पुरुष को खोजती है जो प्रेम के योग्य
हो। उसे वासना नहीं शुद्ध प्रेम चाहिए और वह भी गहराई से करने वाला हो।
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स्त्री पुरुष में वासनामय प्रेम होता है। काम तत्व उनमें अधिक आकर्षण उत्पन्न करता है, उनमें आपसी त्याग की भावना जागृत होती है, परंतु उसकी नींव शरीर की वासना और कामना है, जो आकर्षण बने रहने तक ही दृढ़ रहता है और उसके बाद समाप्त होने लगता है।
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हवस और हैवानियत से ऊपर उठ कर देखिये, स्त्री से अच्छा अगर कोई दोस्त मिल जाए तो कहिये |
प्रेम मे पवित्रता का वास होता हैं, वासना का नहीं | प्रेम का अतिनिकृष्ट रूप वासना है |
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पुरुष का प्रेम गति और चंचलता का प्रतीक होता है,और वहीं स्त्री का प्रेम स्थिरता का प्रतीक है | पुरुष प्रेम के सागर में कुछ सोचे समझे बिना ही छलांग लगा देता है लेकिन स्त्री का प्रेम स्थिर और शांत होता है वह प्रेम के सागर में बहुत सोच समझ कर धीरे से उतरती है।
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स्त्री की समझ और दिमाग़ इतना तेज होता है की एक ही नजर मे पुरुष की नजर और नियत पहचान लेती है परन्तु उस वक़्त धोखा खाती है जब वह एक पुरुष को खुद से ज्यादा चाहने लगती है |
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प्रत्येक स्त्री को पुरूषों की तरह अधिकार प्राप्त हो, क्योंकि स्त्री ही पुरूष की जननी है. हमें हर हाल में स्त्री का सम्मान करना चाहिए.
— राजा राम मोहन राय
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यह हमेशा देखा जाता है समाज मे जब आदमी स्त्री से प्यार करता है | वो अपनी जिंदगी का बहुत छोटा हिस्सा देता है | पर जब स्त्री प्यार करती है वो सब कुछ दे देती है...!!
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स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान है, शांति संपन्न है, सहिष्णु है | पुरुष मे नारी के गुण आ जाते है, तो वह महात्मा बन जाता है | नारी मे पुरुष के गुण आ जाते है तो वह कुलटा हो जाती है |
~ प्रेमचंद
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स्त्री प्रेम नहीं करती वो पूजा करती है, उस पुरुष की जो उसे सम्मान देता है, दिल से चाहता है, स्त्री सौंप देती है, आपना सब कुछ उस पुरुष को जिससे स्पर्श और भाव से वो संतुष्ट होती है!
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स्त्री कोई वस्तु नहीं है की जिसे भोगो, स्त्री तो वो है जो मृत्यु की गोद मे जाकर एक जीवन को जन्म देती है, और जीवन वो ही दे सकता है जो परमात्मा है |
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स्त्री पुरुष को कितना भी प्यार दे दे आखिर मे वों कम ही लगता है और पुरुष स्त्री को कितनी भी इज़्ज़त दे दे और समर्पित रहे आखिर मे वो कम ही लगता है |
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"स्त्री प्रेम एक ऐसा भाव है, जिसमें न केवल दिल की गहराइयों से, बल्कि आत्मा की गहराइयों से जुड़ाव होता है।"
"स्त्री का प्रेम केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक ऐसा संकल्प है जो दिल को छू जाता है और जीवन को बदल देता है।"
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पुरुष दिवस की हार्दिक शुभकामनायें | आज सभी पुरुषो के लिए बेहद खास दिन है, मै उन सभी को धन्यवाद करना चाहती हूँ जो अपनी जिंदगी का हिस्सा है |
# Happy International Men's day 2022
एक पुरूष में शायद इतनी हिम्मत नहीं कि वो एक चरित्रहीन स्त्री से प्रेम कर सके विवाह कर सके लेकिन मेरे और आप लोगों के आस-पास ऐसे कई उदाहरण होंगे जिनमें चरित्रहीन पुरुषों का स्त्रियों ने जीवन के अंतिम क्षणों तक साथ निभाया है
प्रेम,ममता,त्याग,समर्पण = स्त्री
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दैहिक प्रेम चाहे जितना प्रगाढ़ हो,उसका एक छोर कामवासना से और दूसरा अतृप्त कामनाओं से ही जुड़ा रहता है,जब प्रेम दैहिक सम्बन्धों से ऊपर उठकर चेतना के स्तर पर पल्लवित होता है तब प्रेम देह से गुजरकर हमारी आत्मा में विस्तार लेता है और प्राणों का अभिन्न अंग बन जाता है|
सुप्रभात🙏🙏🌹
स्त्री–पुरुष का सम्बन्ध नदी और समुद्र की तरह है पता नहीं नदियों ने अपना अस्तित्व ख़ाक कर दिया समुद्र को बनाने में या समुद्र ने समेट लिया नदियों के दुखों को ख़ुद में।
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काज किये बड़े देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होए हमारो।।
#जय_श्री_राम 🚩🙏
#ॐ_हं_हनुमंते_नमः 🚩