व्यक्तियों पर निर्भरता नहीं होनी चाहिए, जितना सँभव हो इस जगत में देने का सामर्थ्य हो फिर वह धन हो, स्नेह हो, समय हो। देने का सामर्थ्य हो तो व्यक्ति देव समान होता चला जाता है, जिसका बस लेने में मन लगता है उसकी हाथ पसारने की आदत सी हो जाती है। जितना निर्भर रहेंगे, दुःखी रहेंगे।