झोपड़पट्टीयों की आबरू चीख रही,
रास्ते पर पड़ी सिसक रही,
महलों में बेबस बिक रही, जश्न मन रहा है,
ऐ देश वासियों देश जल रहा है,
मेहनतकशो के परिश्रम की,
आने चव्वनी रुपयों में तौल हो रहा है,
महलों में करोड़ो, अरबों में,
तुम्हारे हिस्से की लूट चल रहा है,
ऐ देश वासियों यह देश जल रहा है।