यह चित्र उस समय लिया गया था जब सावरकर बुलबुल के पंखों पर बैठकर माफीनामा लिख रहे थे,,,,,,"जेल में बुलबुल आती थी, सावरकर उस पर बैठकर उड़ जाते थे" और पेंशन लेकर वापस आ जाते थे हमने तो यह कहानी भी सुनी है.
अब यह किस्सा कर्नाटक की किताबो मे सिलेबस का हिस्सा हो गया है