★ साहित्य, समाज एवं दर्शन छात्र // काव्य-रचना का एक अर्थ मनुष्य की कल्पनाशील चेतना का उद्दीपन है //स्वरचित रचनाएं//हास्य-व्यंग्य// क्रिकेट// संगीत प्रेमी //
तुम वृक्षों से फुल तोड़कर ईश्वर की मूर्ति पर चढा आते हो
किसको धोखा देते हो ? वो तो पहले से ही ईश्वर पर चढ़ा हुआ था, ज्यादा जीवंत था उस वृक्ष पर।
- आचार्य रजनीश ♡♡
कभी सारा शहर अपना था
और तुम अजनबी थे
तुम अपने हुए
तो शहर अजनबी हुआ
अब ना तुम अपने हो
ना शहर अपना हैं
उस मोड़ से फिर शुरू करनी है जिंदगी
जहाँ सारा शहर अपना था
और तुम अजनबी थे।
- आशुतोष राणा ☆
जो कभी एकांत में बैठकर,
किसी की स्मृति में,
किसी के वियोग में,
सिसक-सिसक और बिलख-बिलख नहीं रोया,
वह जीवन के ऐसे सुख से वंचित है,
जिस पर सैकड़ों हँसियाँ न्योछावर हैं...!!
—— प्रेमचंद 🌸
(शुभ प्रभात)
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्न कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
हम कार्तिकेय की भांति, भटक रहे ' भ्रमण में हैं।
बप्पा ' करके परिक्रमा,माता -पिता की शरण में है।।
~ सेजल ☆
#GaneshChaturthi2024
तुम्हें फुरसत मिल जाये तो,
मुझसे बात करना..
जब सब से दिल भर जाये तब
मुझसे बात करना..
में इश्क़ में हूँ मेरा तो फ़र्ज़ बनता है,
इंतज़ार करना..
तुम पाबंद नहीं, तुम जिस से चाहो,
उस से मोहब्बत करना..
- राहुल आर्य ☆
टूटे हुए सपनों की
कौन सुने सिसकी ?
अन्तर की चीर व्यथा
पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा
रार नहीं ठानूँगा।
काल के कपाल पर लिखता, मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ।
- अटल बिहारी वाजपेयी ♡♡
विश्व की पुकार है ये भगवत का सार है की
युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है !!!
कौरवों की भीड़ हो या पाण्डवों का नीर हो
जो लड़ सका है वही तो महान है !!!
- पीयूष मिश्रा ★
क्या करते हो?
कहां रहते हो?
शादी कब रहे हो?
घर किराए का है या अपना?
तनख्वाह कितनी है?
हमारा समाज आज भी इन प्रश्नों से ऊपर उठकर
कभी ये नहीं पूछ पाया कि "खुश हो" ?
- आदित्य दीवान ☆
हमारी ख़्वाहिशों का नाम इंकलाब है!
हमारी ख़्वाहिशों का सर्वनाम इंकलाब है!
हमारी कोशिशों का एक नाम इंकलाब है!
हमारा आज एकमात्र काम इंकलाब है!
- गोरख पांडेय ☆
मलाल है मगर इतना मलाल थोड़ी है
ये आँख रोने की शिद्दत से लाल थोड़ी है
बस अपने वास्ते ही फ़िक्र-मन्द हैं सब लोग
यहाँ किसी को किसी का ख़्याल थोड़ी है
मज़ा तो जब है कि तुम जान बूझ कर हारो
हमेशा जीत ही जाना कमाल थोड़ी है
- परवीन शकिर ☆
मैं हमेशा सोचता रहता हूँ
कि आखिर मैं कौन हूँ?
मेरी पहचान बहुत-सी है;
मैं धार्मिक इंसान हूँ
मेरी भाषाई पहचान भी है;
मेरा रिश्ता पैतृक गाँव से भी है;
और फिर में एक छात्र भी हूँ
मैं सोचता रहता हूँ,आखिर मैं कौन हूँ?
- आदित्य दीवान ☆
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसी लिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते
मोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है
ये रूठ जाएँ तो फिर लौट कर नहीं आते
- वसीम बरेलवी ☆