उठो जागो और संघर्ष करो।
लड़ नहीं सकते तो बोलो,
बोल नहीं सकते तो लिखो,
लिख नहीं सकते तो साथ दो,
साथ भी नहीं दे सकते तो
जो लिख, बोल, लड़ रहे हैं उनका मनोबल बढ़ाओ।
कुछ एंटीनाधारियों को बुद्ध मूर्ति में जनेऊ दिखता है इस तरह तथागत का ब्राह्मणीकरण करते है जबकि
सबूत 1 में देखा जा सकता है पैरों पर भी उसी तरीके की लकीर है जो पारदर्शी कपड़े का बोधक है।
सबूत 2 में भी ऐसे ही कपड़े का आकृति बाएं हाथ पर भी बनी है जो सारे भ्रम दूर कर देता है।
आंध्र प्रदेश का कादंदरमा मंदिर है।
बडे वाले नारंगी घेरे में जो मूर्ति हैं वह तथागत की माता महामाया की मूर्ति है।
और जो छोटे नारंगी घेरे के अंदर दाईं और की मूर्ति है वो खुद तथागत है।
यह प्रमाण है कि पहले यह जगह बौद्ध स्थल रहा होगा।
बुद्धिज्म में भिक्खाटन केवल प्रतीकात्मक ही रह गया है।
सभी बुद्धिस्ट भाई एक दूसरे से जोड़ते चलिए
#जयभीम #नमोबुद्धाय #जयसंविधान
बुद्धिज्म की खूबसूरती देखिए👇
डॉ भीमराव अम्बेडकर जी ने कहा था
"यह देश असुरों और नागों का घर है।"
(असुर - मूलनिवासी राजा)
पुरानी किताबों में लिखा है
"संपूर्ण पृथ्वी पर असुरों का राज था।"
वे भारतवर्ष को पृथ्वी कहते थे।
(पुस्तक -अयोध्या का युद्ध)
नाग लोग, बुद्ध को और बुद्ध से पहले हुए बुद्ध को मानते थे।
शील धम्म की नींव है, ध्यान धम्म की भीत ।
प्रज्ञा छत है धम्म की, मंगल भवन पुनीत ।।
बुद्ध पूर्णिमा के दिन तथागत जी का जन्म हुआ
आज ही के दिन उनको ज्ञान प्राप्त किया और आज ही उनको परिनिर्वाण प्राप्त हुआ।
हजारों को जीतना आसान है
लेकिन जो खुद पर विजय पाता है वही सच्चा विजयी है ~तथागत
इंग्लैंड के इतिहासकार
चार्ल्स एलेन ने लिखा है कि भारत के जो हिंदू मंदिर सर्वाधिक प्रमुख हैं, वे बुद्धिस्ट संरचना
हैं।
उदाहरण:-
उत्तराखंड का बद्रीनाथ, पुरी का जगन्नाथ, केरल का अयप्पा और पंढरपुर
का विट्ठलनाथ में या तो बुद्ध मूर्तियों को देव छवि में या लिंग में परिवर्तित किया गया।
*"स्तूप"*
स्तूप बौद्ध धर्म का सबसे विशिष्ट स्मारक है। प्राकृत और कई शिलालेखों में स्तूप को थुब कहा गया है।
बुद्ध के परिनिर्वाण के प्रतीक स्तूप मूल रूप से बौद्ध अवशेषों और अन्य पवित्र वस्तुओं को रखने के लिए बनाए गए थे।
अशोक के समय तक बौद्ध पूजा की वस्तु के रूप में देखा जाने लगा।
ASI ने लिखा है कि परशुराम ओर चाणक्य काल्पनिक हैं. भारतीय पुरातत्व विभाग के पास इन दोनों काल्पनिक चरित्रों का कोई रिकॉर्ड नहीं है ओर न ही जन्म संबंधी रिकॉर्ड, हमारे पास जो सबूत हैं वो परशुराम ओर चाणक्य दोनों को काल्पनिक साबित करने के लिए काफी हैं।
@icsinsystems
की कलम से 🙏
#फतेहपुर_उत्तर_प्रदेश में #खेत मे मिला #बुद्धस्तंभ
18 अक्टूबर 2022 दिन मंगलवार को फतेहपुर उत्तर प्रदेश के खागा तहसील ब्लॉक ऐरायाँ ग्राम शिवचरन पुरवा के खेत में 12 फुट लंबा प्राचीन बौद्धस्तंभ, आलू की फसल बुवाई करते समय मिला।
#नमोबुद्धाय
बौद्ध धर्म के महान संरक्षक कनिष्क राजा द्वारा निर्मित, बौद्ध स्तूप की वास्तुकला इतनी विस्मयकारी थी कि दुनियाभर के यात्रियों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
पेशावर, पाकिस्तान में शाहजी की ढेरी के खंडहर, अद्भुत हैं।
प्राचीन दुनिया की सबसे ऊंची चार सौ फुट, तेरह मंजिला इमारत उस वक्त मशहूर थी।
मध्य प्रदेश में विदिशा जिले के ग्यारसपुर तहसील में ऊंचाई पर स्थित एक बौद्ध स्थल है।
भूमि से लगभग सौ सीढियां चढ़कर पत्थरों से बना स्तूप मिलता है।
स्तूप सातवीं-आठवीं शताब्दी का है और इस स्तूप के बाहर चबूतरे पर, बुद्ध की भूमिस्पर्श मुद्रा में प्राप्त मूर्ति भी सातवीं सदी की है।
अधिकांश गांव के बाहर पीपल के पेड़ के नीचे बरमबाबा पूजे जाते हैं ये बरमबाबा कोई और नही बोधिसत्व सब्बत्थ (सिद्धार्थ) हैं जो दुर्बल शरीर अवस्था में बोध प्राप्ति के लिए ध्यान ( सम्यक समाधि) में बैठे हैं।
अजीना स्तूप ताजिकिस्तान
सातवीं-आठवीं सदी में अस्तित्व में रहा स्तूप के आस पास कई मनौती स्तूप, बौद्ध मठ और बस्तियों के अवशेष मिले हैं।
यहां विभिन्न मुद्राओं में रखी बुद्ध की मूर्तियां मिली हैं।
जिनमें तेरह मीटर की महापरिनिर्वाण मुद्रा की मूर्ति भी है।
यहां प्राचीन चित्रकला भी थी।
त्रिलोकनाथ शिव मतलब अवलोकितेश्वर
बोधिसत्व अवलोकितेश्वर को हिमाचल प्रदेश के भोटी बौद्ध लोग "त्रिलोकनाथ शिव" कहते हैं I जहां ब्राह्मण धर्मी शिव तथा बौद्ध लोग अवलोकितेश्वर बुद्ध के रूप में पूजा करते हैं I
हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति में त्रिलोकनाथ बोधिसत्व का विहार है।
लांगुडी हिल महास्तूप उड़ीसा
समय:- तीसरी सदी ई.पू. से ग्यारहवीं ई.
महास्तूप उन दस स्तूपों में से एक है जो अशोक द्वारा ओड��शा (ओड्रा) में उन स्थानों पर बनवाए गए थे जहाँ बुद्ध ने दौरा किया और उपदेश दिया था।
यहां मिली शिलालेख में "असोक नामक बौद्ध उपासक" द्वारा बनवाया गया, लिखा है।
सन्नति (कर्नाटक) में बौद्ध मूर्ति का हिस्सा, कोनागमन बुद्ध का है जो तथागत बुद्ध से पहले बुद्ध हुए थे।
मूर्ति पर कोनागामन लिखा हुआ है तथा लिपि के नीचे उदुम्बर का वृक्ष बना हुआ है।
तथागत मूर्ति के साथ पीपल वृक्ष बना होता है उसीप्रकार कोनागमन मूर्ति के साथ उदुम्बर वृक्ष बना होता है।
इतिहास सिर्फ वो नहीं, जिसे शासकों ने लिखवाया और जो लिखा गया है बल्कि
वो भी है, जिसे हमारे पुरखों ने सहा है, किया है, लेकिन लिखा नहीं गया है।
चिनुआ अचैबी ने लिखा है कि जब तक हिरन अपना इतिहा स खुद नहीं लिखेंगे, तब तक
हिरनों के इतिहास में शिकारियों की शौर्य गाथाएँ गई जाती रहेंगी।
खोया हुआ कोटिलिंगला बौद्ध स्थल, तेलांगना
समय:- चौथी सदी ई.पू. से दूसरी सदी ई. तक
कोटिलिंगला के शुरुआती किले की पहचान आंध्र के पास 30, दीवारों वाले शहरों में से एक के रूप में की गई थी, जैसा कि ग्रीक राजदूत मेगस्थनीज ने अपनी इंडिका में उल्लेख किया था। यह अशोक जनपद की राजधानी थी।
सिंदूर और नागवंश
भारत में सिंदूर की खोज नागों ने की।
सिंदूर को नाग-संभूत और नागज कहा जाता है। दोनों का अर्थ है कि "नागों से उत्पन्न हुआ"
मतलब कि सिंदूर को नागों ने जन्म दिया।
इसे नागरेणु भी कहते हैं।
इसीलिए सिंदूर के पर्यायवाची शब्दों में नागों की इस खोज का इतिहास छिपा हुआ है।
बौद्ध धम्म के आगे बड़े बड़े राजा महाराजा और विदेश आक्रांता नतमस्तक हो गए।
जो भी जम्बूद्वीप आया उसने बौद्ध धम्म अपना लिया।
जिसका प्रभाव सातवीं सदी तक स्पष्ट देखने को मिलता है।
फिर प्रच्छन्न बुद्ध के अलग पंथ चलाने के बाद पंथ में चल रहे.. 👇
धूलिकट्ट बौद्ध स्तूप, तेलंगाना
समय:- दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व
महास्तूप बौद्ध धम्म के थेरवाद संप्रदाय से संबंधित था।
यहां बुद्ध को उनके चतरा, पादुका, स्वास्तिक के साथ सिंहासन, अग्नि स्तंभ आदि जैसे प्रतीकों में दिखाया गया है।
चूना पत्थर के स्लैब के प्रतीक में नागराजा मुचिलिंद है।
शेवाकी स्तूप अफ़गानिस्तान
हिंदुकुश पर्वत के पास शेवाकी गांव से स्तूप प्राप्त हुआ है।
शेवाकी स्तूप का निर्माणकाल तीसरी सदी का है।
यहां स्तूपों की संख्या आठ और एक मठ है।
स्तूप के चारों ओर किलेबंदी जैसी दीवार प्राप्त हुई है।
उत्खनन से यहां 176 कलाकृतियां प्राप्त हुई हैं
संघोल स्तूप पंजाब
जनश्रुतियों की माने तो स्तूप असोक के 84000 निर्माणकार्यों में से एक था लेकिन असल में असोक ने इसका पुनरुद्धार किया था।
हड़प्पा युग से मौर्येत्तरकाल तक के महत्व पूर्ण साक्ष्य मिले हैं।
पहलो, गोंदों कंफिसियस, कुषाण व अर्द्धजनजातिय समुदायों की मुद्राएं भी मिलीं।
धम्मचक्रपुरम (फणीगिरी) बौद्ध स्थल
समय:- प्रथम सदी ई.पू.
पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में एक महास्तूप मिला है, जिसके बाद पत्थर के स्तंभों वाला मण्डली हॉल, दो अपसाइड चैत्यगृह, तीन विहार, सातवाहन राजवंशों से संबंधित जातक कथाओं और शिलालेखों को दर्शाते हुए मूर्तिकला पैनल हैं।
कंथकसैला (घंतशाला) महास्तूप आंध्र प्रदेश
सुकिती के सफेद घोड़े कंथक और बौद्ध धम्म के स्कूल सैला के नाम पर इस स्थान का नाम कंथकसैला पड़ा।
समय:- तृतीय सदी से दसवीं-ग्यारहवीं सदी
यह स्थान तथागत बुद्ध से संबंधित सभी चीजों की तरफ संकेत करता है।
यहां सातवाहन और रोमन सिक्के मिले हैं।
नालंदा जिला में जहां बुद्ध को तेलिया बाबा के रूप में पूजा जाता है वहां से पंद्रह किलोमीटर दूर तेतरावां गांव में बुद्ध को भैरव बाबा बताकर लोग पूजते थे।
जब लोगों ने तथागत की मूर्ति देखी तब इसका खुलासा हुआ और फिर इसे बौद्धों को सौंपा गया।
अब यहां बौद्ध स्तूप बनाया गया है।
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सन्यासी रल्ला टेंपल पीठापुरम आंध्र प्रदेश
इस स्थान पर बौद्ध मूर्ति मिली है इसके आसपास शहरी अतिक्रमण हो चुका है।
सम्यक समाधि में बैठे बुद्ध का ब्राह्मणीकरण कर मन्दिर बना दिया गया है। मन्दिर के ऊपर ऋषियों और कृष्ण की मूर्ति का अतिक्रमण किया गया।
दक्षिण के चोल राजाओं की बौद्ध कलाकृतियों पर इतिहासकार कुछ नही कहते
जबकि तमिलनाडु के तिरुवरुर जिले के सिरूर गांव के किसान टी. रामालिंगम को खेत में नींव खोदते समय
बौद्ध कलाकृतियों का बड़ा खजाना मिला था
42 कांस्य, 3 पत्थर और संगमरमर की बौद्धकलाकृतियाँ चेन्नई म्यूजियम में रखी गई हैं
तख्त ए रुस्तम (नवविहार मठ) बल्ख अफ़ग़ानिस्तान
स्तूप और मठ पहाड़ो को काटकर बनाया गया है इसमें पांच कक्ष, दो वन्दना स्थान और गुंबदनुमा छत है।
अंदरूनी छत पर, खूबसूरत कमल के पतों को उकेरा गया है।
पास की पहाड़ी पर स्तूप मौजूद है जिस के अंदर आठ गुफाएं है।
स्तूप का व्यास 22 वर्ग मी है।
डुपाडु बौद्ध स्थल आंध्रप्रदेश
समय:- सातवाहन शासनकाल
स्तूप सभी बौद्घ संरचनाओं के साथ समर्थित ईंटों से बना हैं।
एक प्रदक्षिणापथ नक्काशीदार चूना पत्थर के स्लैब के साथ दो भक्तों को बोधि वृक्ष की पूजा करते हुए दर्शाया गया है
वेदिका के साथ स्तूप, तोरण,मंडप और एक घोड़ा दिखाया गया है।
विलियम ब्रुटन इंग्लैंड के प्रसिद्ध समुद्र यात्री थे। उन्होंने 1633 ई. में जगन्नाथ पुरी की यात्रा की थी।
तब पुरी की रथयात्रा निकली थी।
उन्होंने रथयात्रा के रथ और मूर्ति का आंखों देखा स्केच बनाया था।
रथ में दोनों तरफ 16 पहिए थे लेकिन मूर्ति सात फन वाली नाग की आकृति में थी।
फयाज़ स्तूप उज़्बेकिस्तान
प्रथम सदी में स्तूप का निर्माण कुषाण साम्राज्य में हुआ।
कुषाण बैक्ट्रिया में कई बौद्ध बस्तियाँ थीं।
यहां कई स्तूप है जिसमे फयाज़ सबसे प्राचीन है।
मूल स्तूप छोटा है जिसे सुरक्षात्मक आवरण नुमा बड़ा स्तूप बनाकर संरक्षित किया गया है,
पास में ही बौद्ध मठ है।
सिंधु घाटी सभ्यता मूलतः बौद्ध सभ्यता
आर डब्ल्यू टी एच आकिन विश्वविद्यालय, जर्मनी के पुरातत्ववेत्ता माइकल जेंसन ने वेरार्डी
की रिसर्च पर मुहर लगाते हुए लिखा है कि मुआनजोदड़ो का स्तूप सिंधु घाटी सभ्यता के
काल का है।
स्तूप के पूर्वी बौद्ध
मठ से कुषाण कालीन सिक्के मिले हैं।
बौद्ध धम्म के प्रसार के साथ ही, उससे जुड़े शिल्प और कारीगर कश्मीर से एशिया के दूसरे हिस्सों में भेजे गए और वहां के शासकों ने कारीगरों को संरक्षण दिया।
मध्य तिब्बत के प्राचीन राज्य में जाकर वहां बनाए जा रहे बौद्ध मठों को सजाने के लिए कश्मीरी कारीगरों के जाने के रिकॉर्ड मौजूद हैं।
गोली महास्तूप आंध्र प्रदेश
समय:- द्वितीय सदी की प्रतिकृति
पूर्ण विकसित स्तूप कला आन्ध्र देश के गोली स्तूप में लक्षण और अंग पूरी तरह विद्यमान थे। गोली के अन्य शिला पट्टों में एक नागपट्ट है जिस पर नागराज देवता की भव्य मूर्ति है।
मीनार -ए -चकरी, अफगानिस्तान
इस बौद्ध स्तंभ, जिसे "चकरी की ��ीनार" के रूप में, गाँव के नाम पर जाना जाता है।
कुषाण कालीन इस स्तंभ को विम कडफिसस ने पहली शताब्दी ईस्वी में बनवाया था।
विम का यह स्तंभ असोक स्तंभों से प्रभावित था और कनिष्क ने इसका सौंदर्यीकरण करवाया था।
"अशोक चक्र" में विद्यमान तीलियों का महत्व
पहली तीली:- संयम (संयमित जीवन जीने की प्रेरणा)
दूसरी तीली:- आरोग्य (निरोगी जीवन जीने की प्रेरणा)
तीसरी तीली:- शांति (देश में शांति व्यवस्था कायम रखने की सलाह)
चौथी तीली:- त्याग (देश एवं समाज के लिए त्याग की भावना का विकास)
कुरुमा बौद्घ स्थल उड़ीसा
कुछ विद्वानों का मानना है कि प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु-विद्वान ह��वेनसांग ने कुरूमा बौद्ध स्तूप स्थलों में से एक का वर्णन किया है।
यहां पत्थर की शिला मिली थी जिसमें भूमिस्पर्श मुद्रा में बुद्ध की मूर्ति के अलावा हेरुका, अवलोकितेश्वर की मूर्ति भी मिली।
अशोक के अभिलेखों का विभाजन तीन वर्गों में किया जा सकता है-
(1) शिलालेख,
(2) स्तंभलेख तथा
(3) गुहालेख
अशोक के शिलालेख
प्रथम शिलालेख - पशुबलि की निंदा
द्वितीय शिलालेख - मनुष्य एवं पशु की चिकित्सा
तीसरा शिलालेख - अधिकारियों का पांचवें वर्ष दौरा
चौथा शिलालेख - धम्मघोष की घोषणा
सतधारा स्तूप
सम्राट अशोक कालीन स्तूप 28 एकड़ जमीन पर फैले लगभग 29 बौद्ध स्तूप श्रृंखला के आलावा और दो मठ भी है।
खुदाई में मिले मिट्टी के पात्रों के टुकड़े जो (500-200) ई. पू. का माना गया है।
बौद्ध शैल चित्र भी मिले हैं जिन्हें चौथी से सातवीं सदी के बीच का समझा गया है।
गुलदरा (गुल दर्राह) स्तूप काबुल अफ़ग़ानिस्तान
फूलों की घाटी में स्तूप असोक के पुत्र कुनाल ने बनवाया था।
मूल स्तूप नष्ट हो चुका है।
यह गंधार और तक्षशिला स्तूप श्रृंखला में से एक है।
स्तूप के आधे और तीन-चौथाई रास्ते के बीच छोटा कक्ष (मौर्यकालीन) था जिसमें एक अवशेष और कुछ खजाना था।
फहियान के अनुसार असोक अपने छोटे भाई (जो गज्झकूट, राजगीर में रहते थे) को पाटलिपुत्र बुलाने के लिए भिक्खुना कृत्रिम पहाड़ी का निर्माण करवाया था।
ह्वेनसांग के अनुसार सम्राट के भाई पाटलिपुत्र नहीं आए लेकिन उनके पुत्र महिंद्र थेर उसी कृत्रिम पर्वत पर बने गुफानुमा आवास में रहने लगे।
गुंटुपल्ली बौद्ध स्मारकों का समूह आंध्रप्रदेश
समय:- द्वितीय सदी ई.पू. से दसवीं सदी तक
बौद्ध स्थल थेरवाद बौद्ध शाखा को समर्पित है और प्रदेश का सबसे प्राचीन स्थल माना जाता है।
पत्थर के स्तंभों पर ई.पू. पहली से पांचवीं सदी तक के दान का वर्णन है।
कुछ मूर्तियां बाद में जोड़ी गईं हैं
शिवालयम मंदिर या बौद्ध स्थल
कोंडावीडु आंध्रप्रदेश
समय:- पहली-दूसरी सदी ई.
कोंडावीडु किले में स्थित शिवालयम मन्दिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा था कि मन्दिर के गर्भगृह के नीचे
"बौद्ध स्तूप के अवशेष मिलने लगे।"
साइट से रेलिंग के टुकड़े, स्तूप, स्तंभ आदि पर पंखुड़ी डिजाइन का पता चला
एक समय था जब मंत्रों को सुन लेने से कान में सीसा पिघला कर डाल दिया जाता था और बोल देने पर जीभ काट दी जाती थी।
अब उन्हीं के अग्रजों को मंत्रों को सुनने, देखने के लिए पैसे और आमंत्रण दिया जा रहा है।
क्रोनोलॉजी समझिए।
आपको शिक्षा से दूर रखना ही इनका उद्देश्य है।
भरहुत रेलिंग के एक अभिलेख में धनभूति ने अपने – आप को राजा लिखवाया है, फिर वह शुंगों का सामंत कैसे हुआ?
भरहुत के पूरबी सिंहद्वार पर जो राजमिस्त्री के निशान बने हैं, वे खरोष्ठी में हैं।
भरहुत की पाषाण वेदिकाओं और तोरणों का निर्माण शुंगकाल के वात्सीपुत्र धनभूति द्वारा पूर्ण हुआ।
वैश्य टिकरी महास्तूप उज्जैन
महापरिनिर्वाण के पश्चात बने इस स्तूप को अवंती के भिक्खुसंघ द्वारा तथागत के चीवर और आसंदी कुंभ में रखकर ऊपर स्तूप बनाया गया क्योंकि अस्थियों का विसर्जन पहले ही हो चुका था।
कालांतर में देवी ने इसका उद्धार किया
पश्चात असोक ने भी पुनः निर्माण करवाया।
बुद्धना पहाड़ी (बोज्ज्नाकांडा) [महास्तूप, मठ और गुफाएं] आंध्रप्रदेश
इस पहाड़ी बौद्घ स्थल से दूसरी सदी ई.पू. से लेकर 9वी सदी तक के अवशेष पाये गये हैं।
पहाड़ियों में कई अखंड स्तूप, रॉक-कट गुफाएं, कई मन्नत स्तूप, चैत्य और मठ हैं।
देवी हरिति की छवि भी पहाड़ी की तलहटी में मिली है।
चंदावरम महास्तूप बौद्घ स्थल आंध्रप्रदेश
समय:- द्वितीय सदी ई.पू.
सातवाहन शासनकाल में निर्मित
सिंगरकोंडा पहाड़ी पर डबल सीढ़ीदार यह महास्तूप 120 फीट परिधि और 30 फीट ऊंचाई वाले गुंबद में धर्मचक्र , पवित्र बोधि वृक्ष और अन्य बौद्ध प्रतीकों को चित्रित करते हुए नक्काशीदार पैनल हैं।
-------*"महान थेरी किसा गौतमी"*-------
पाली भाषा में किसा का अर्थ है 'काही' (घास की एक किस्म) शारीरिक तौर पर तिनके जैसी
पतली होने के कारण लोग उसे किस्सा गौतमी कहते थे। उसका नाम गौतमी था।
किसा का बालक अभी चलने
फिरने भी नहीं लगा था कि अचानक उसकी मृत्यु हो गई।
-*"प्रब्रज्जा"*-
प्रथम सात भिक्खुओं को तथागत ने स्वयं दीक्षा दी थी।
तब केवल "एहि भिक्खु" वाक्य से ही प्रब्रज्जा विधि होती थी।
भिक्खुओं की संख्या बढ़ने पर पुराने भिक्खु को प्रब्रज्जा देने की अनुज्ञा मिली।
महापरिनिर्वाण के बाद भिक्खु ही तर्कवाद दर्शन के आधार पर प्रब्रज्जा कराते थे।
बकीट चोरस, यान, केदाह में 21 अप्रैल 2024 को यूनिवर्सिटी सेन्स मलेशिया के शोधकर्ताओं ने लगभग पूर्ण आदमकद बुद्ध की आकृति के रूप में एक पुरातात्विक अवशेष खोजा है।
बुद्ध की यह आकृति ध्यान मुद्रा में पाई गई जो अंकोरवाट से भी पुरानी है।
इसके अलावा एक अन्य बौद्ध आकृति के अवशेष मिले है।
मैं उस माटी का वृक्ष नही
जिसको नदियों ने सींचा है,
बंजर मातियों में पलकर मैंने
मृत्यु से जीवन खींचा है।
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं,
शीशे से कब तक तोड़ोगे।
मिटने वाला मैं नाम नही,
तुम मुझको कब तक रोकोगे।
मानिकियाला स्तूप रावलपिंडी पाकिस्तान में स्थित है।
कहा जाता है कि सम्राट असोक द्वारा बनवाया पहला स्तूप यही था इसके आस पास पंद्रह स्तूप और दो हजार घर भी थे।
कनिष्क काल में और राजा माणिक द्वारा इसका पुनःउद्धार किया था।
एक किदवंती के अनुसार यह स्थान अनार्यों की राजधानी था।
चखिल-ए-घौंडी स्तूप हद्दा अफ़ग़ानिस्तान
कुषाण कालीन चूना पत्थर का स्तूप द्वितीय सदी के आस पास का है।
ग्रीको-बौद्ध कला का संयोजन के साथ हेलेनिस्टिक तथा भारतीय कलात्मक तत्व भी देखने को मिलता है।
मनौती स्तूप से बड़ा यह स्तूप तीन मंजिला के रूप में बनाया गया है।
ललितगिरी ओडिशा में स्थानीय निवासियों द्वारा हटाई गई और मत्स्य रूप में सजाई गई मौर्यवंशी सम्राट की मूर्ति।
यहां में चार छोटे मठों के अवशेष हैं, जिनमें गर्भगृह हैं। U-आकार का चैत्यगृह भी है
मठों तक आधे कमल आकार की सीढि़यों से पहुंचा जाता है।
वंदनकक्ष छोटे स्तूपों से घिरा हुआ है।
असोक ने 84000 स्तूप बनवाए थे।
असोक द्वारा स्तूप बनवाए जाने का जिक्र फाहियान ने अपने यात्रा वृतांत के 27 खण्ड में किया हैं।
12000 बुध की मूर्तियां तो हांगकांग के शॉ-टिन के एक बौद्ध मठ में है इसका नाम "दस हजार बुद्ध मठ" है लेकिन यहां बुद्ध की मूर्तियों की संख्या 12000 है।
बनवासी(कोंकणपुरा) बौद्ध स्थल
चूटू सम्राज्य ने बनवासी को अपनी राजधानी बनाया।
चुटू का अर्थ फन (नाग का) है।
इस काल का एक नाग-पत्थर पर शिलालेख के अनुसार
"चुटू राजा विंहुकड़ा चुटुकुलानंद सातकर्णी (तीसरी शताब्दी ई.) की बेटी नागसिरी ने बौद्ध विहार, नाग-पत्थर और तालाब उपहार में दिया।"
लिंगला कोंडा मनौती स्तूप आंध्रप्रदेश
बोज्जन्ना कोंडा के शीर्ष महास्तूप के पास सटी जुड़वां पहाड़ी लिंगाकोंडा की ओर जाने वाली सीढ़ी है।
दूसरी सदी से नौवीं सदी तक यह स्थल प्रभाव में रहा।
यहां शानदार दृश्य है कि सैकड़ों रॉक-कट वाले मन्नत स्तूप, कुछ सारणी में और बाकी अव्यवस्थित है।
श्रुघन का चनेती स्तूप
यह स्तूप अशोक स्तूप के नाम से प्रसिद्ध है क्योंकि बुद्ध धर्म के प्रचार के लिए इस स्तूप को सम्राट अशोक ने बनवाया था।
यहां बुद्ध के बाल और नाखून के अवशेष मिले हैं और चारों ओर सारिपुत्र , मुदगलापुत्र के समान अवशेषों के साथ दस स्तूप और एक मठ थे।
भौमकारा राजवंश उड़ीसा
समय:- आठवीं सदी
ढेकानल अभिलेख से पता चलता है कि भौमकारा राजाओं ने बौद्ध मठों, विहारों के निर्माण में अकूत संपत्ति खर्च किए थे।
रत्नागिरी, उदयगिरी और ललितगिरी में बुद्धिज्म की छवियाँ इसी राजवंश की देन हैं।
इनकी राजधानी जाजपुर के निकट गुहादेवपाटक में थी।
बौद्ध चिन्ह पत्थर, कजाकिस्तान
समय:- छठी सदी से सातवीं सदी
तमगली-तास में बुद्ध चित्र जिस पर तिब्बती शिलालेख है:-
"संगे शाक्यतुपा ला नमो"
अर्थात
शाक्यमुनि बुद्ध को श्रद्धांजलि
यह यूनेस्को विश्वधरोहर स्थल है।
विशाल चट्टानें कांस्य युग के बाद की हजारों शैल चित्रों से चिह्नित हैं।
सम्राट असोक ने खुद अपने सभी शिलालेख में लिखी लिपि को धम्मलिपि कहा है।
बाद में वराहमन प्रभाव से ललितविस्तर में धम्मलिपि को ब्रह्मलिपि कहा और उसका संस्कृत में अनुवाद ब्रह्मलेख किया।
धम्मलिपि का अनुवाद धर्मलेख किया।
जबकि असोक ने धर्मलेख नही बल्कि राजज्ञा लिखवाई थी।
घालमेल है भाई
गुड़ीवाड़ा डिब्बा महास्तूप आंध्र प्रदेश
अन्वेषण से संभवतः दूसरी सदी ई.पू. की प्राचीन बौद्ध विरासत स्थल प्राप्त हुआ
पावुरलकोंडा और थोटलाकोंडा बौद्ध स्थल के साथ कुछ समानताएं हैं।
यहां ईंटें, स्तूप के अवशेष और एक छोटा रॉक कट कुंड है।
पश्चिम की ओर निचली छत में विहार के अवशेष हैं।
जौलियन स्तूप खैबर पख्तूनख्वा पाकिस्तान
जौलियन दूसरी शताब्दी में कुषाणों द्वारा बनाया गया था।
इसमें एक मुख्य केंद्रीय स्तूप, 27 परिधीय छोटे स्तूप, बुद्ध के जीवन दृश्यों को प्रदर्शित करते 59 छोटे चैपल और दो चतुर्भुज वंदना स्थल जिसके चारों ओर मठवासियों के रहने की व्यवस्था की गई थी।
गुम्मादिदुरु बौ���्ध पुरातत्व स्थल आंध्रप्रदेश
समय:- द्वितीय सदी से बारहवीं सदी तक
मूलरूप से यह स्थान बौद्घ शिक्षा के लिए जाना जाता था।
मठवासी उपस्थिति का प्रमाण पुवस्क्लियास (पूर्वसैलिया) नामक संप्रदाय के रखरखाव के लिए धन देने वाला शिलालेख है।
यहां मुख्य मठवासी प्रतिष्ठान थे।
उत्तर भारत का पहला पाषाण निर्मित स्तूप चन्दौली
समय:- सम्राट असोक कालीन
कोठी पहाड़ी की प्राकृतिक गुफा से बुद्ध मूर्ति और पहाड़ी की चोटी पर आधुनिक मंदिर में बोधिसत्व की प्रतिमा, काले एवं लाल मृदभांड, सिक्के, शैलचित्र, कुषाण कालीन ईंटें इस क्षेत्र के दीर्घकालीन इतिहास को बताती है।
नारंगी रंग का तरल गिराने के बाद पता चलता है कि असल में मूर्ति की आंखें बुद्ध की मूर्तियों की तरह ही है जिसे पेंट करके खुला बनाया गया है।
साफ साफ झलक रहा है कि तथागत बुद्ध ही हैं।
कारा स्तूप टर्मेज उज़्बेकिस्तान
द्वितीय सदी कुषाण काल में इस स्तूप की निर्माण हुआ।
दूसरी सदी के अंत और तीसरी सदी की शुरुआत में कारा स्तूप की प्रतिष्ठा चरम पर थी।
चौथी सदी में, मठ का एक हिस्सा छोड़ दिया गया और मिट्टी काटकर बनाये सेल्स का प्रयोग दफनाने के लिए किया जाने लगा।
नालंदा महाविहार के पश्चिम उत्तर में कुंडवापुर गांव में पवित्र गोरैया स्थान है।
गोरैया बिहार के दुसाध समुदाय से जुड़े लोक देवता हैं, जो असल में बुद्ध हैं।
इनकी भूलवश कोई देवता समझकर पूजा की जाती है।
वह 1,000 साल पुरानी मुकुटधा��ी बुद्ध की मूर्ति है, जो भूमि-स्पर्श मुद्रा में है।
ऐतिहासिक अभिलेखों के आधार पर, स्पष्ट है कि केरल के बौद्धों के दर्शन चीन, जापान और तिब्बत जैसे दूर के स्थानों तक फैले।
महायान में विश्व-प्रसिद्ध विद्वान जैसे भवविवेक, वज्रबोधि, अयप्पा और परमबुद्ध (अजितनाथ) केरल से थे।
तीसरी शताब्दी ई.पू. से 12वीं शताब्दी ई. तक धम्म की उपस्थिति थी।
गोदावरी नदी से सटे इस पुरातात्विक स्थल में ईंट की संरचनाएं, भंडारण, मिट्टी के बर्तन, क्रिस्टल मोती, अर्ध-कीमती पत्थर, कांच और टेराकोटा, हड्डी और टेराकोटा से बनी मुहरें, चाकू, रेवेट, नाई के चाकू और कील सहित लोहे के उपकरण मिले हैं
सातवाहन राजाओं के सिक्के सीसे और तांबे में ढाले गए।
महाराष्ट्र के भंडारा जिले में पवनी नामक नगर के दक्षिण में 20 फीट ऊंचा मिट्टी का टीला मिला है। 1969-70 में खुदाई से "महास्तूप" मिला।
यह महास्तूप असोक से पहले का है और समय समय पर "नाग दानदाताओं" द्वारा निर्माण कराया।
इनमें से एक हैं - नाग पंचनिकाय
ये पांचों निकाय के ज्ञाता थे।
वृक्ष के नीचे खाली सिंहासन बुद्ध का प्रतीक है, इसके समक्ष एरपत नागराजा वंदना मुद्रा में हैं।
“एरपतो नागराजा भगवतो वंदते”
अर्थ
नागराजा एरपत भगवत (बुद्ध) की वंदना करते हैं।
लेकिन घेरे में दिख रहें शिलाचित्र से कृष्ण और कालिया नाग की काल्पनिक कथा बुद्धिज्म से चोरी किया, स्पष्ट है।
पावुरलकोंडा आंध्र प्रदेश
इसे बौद्ध मठ परिसर के रूप में जानते है, जो सातवाहन काल में तीसरी सदी ई.पू. से दूसरी सदी ई. तक फला फूला था।
पावुरलकोंडा को तटीय क्षेत्र के सबसे विशाल बौद्ध मठों में से एक कहा जाता है।
इस पहाड़ी क्षेत्र में हीनयान बौद्ध धर्म का दर्शन व्याप्त था।
तप सरदार स्तूप, गजनी अफ़गानिस्तान
कुषाण कालीन यह स्तूप कनिष्क द्वारा बनवाया गया था परन्तु कनिष्क प्रथम/ द्वितीय/ तृतीय में किसके द्वारा बनवाया, पुष्टि नहीं हुई है।
तीसरी सदी में बने अभयारण्य को "कनिका (कनिष्क) महाराज विहार" कहा जाता था।
इसको "शाह बहार" के रूप में भी जानते हैं।
सरिपल्ली खोया हुआ बौद्ध अवशेष स्थल आंध्रप्रदेश
आपको पहाड़ी पर बौद्ध स्मारकों का कोई निशान नहीं मिलेगा क्योंकि वे मिट्टी से ढके हुए हैं।
पास में दसवीं सदी में बने मंदिर के पुजारी को बौद्ध स्मारक की ईंटें मिलीं जब वो पहाड़ी पर वृक्षारोपण के लिए खुदाई कर रहे थे।
जातकट्ठकथा (दूरेनिदान 2-26) एवं बुद्धवंस (3-26 ) में
24 बुद्धों एवं उनके बोधि वृक्षों का विवरण है।
फाहियान के अनुसार देवदत्त के अनुयायी शाक्यमुनि बुद्ध के बजाय पहले हुए तीन बुद्धों (ककुसंध, कोणागमन और कस्सप बुद्ध) में श्रद्धाभाव निवेदित करते थे।
बौद्ध धम्म तथागत से पहले भी था।
नागपुर से लौटने के बाद मेरा "धम्म अभिषेक" हुआ और सम्राट असोक विजय दशमी से मैं लुंबनी में हूं।
श्रावस्ती होकर वापस आकर फोटो साझा करूंगा।
बारिश का हाई अलर्ट जारी हो चुका है।
सभी भाइयों को 🙏🙏🙏
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